विद्यालय का वार्षिक उत्सव (वार्षिकोत्सव) निबंध

निबन्ध-लेखन

विद्यालय का वार्षिकोत्सव

रूपरेखा- (1) प्रस्तावना (2) समय (3) उत्सव का शुभारम्भ (4) अनेक आयोजन, (5) उपसंहार 

प्रस्तावना- प्रत्येक विद्यालय में वार्षिकोत्सव सम्पन्न किया जाता है। वार्षिकोत्सव विद्यालय की प्रगति तथा उल्लास का प्रतीक है। छात्रों, अध्यापकों तथा अभिभावकों के मिलने का एक शुभ अवसर है। इस अवसर पर विद्यालय खूब सजाया जाता है। विद्यालय के भवन पर रोशनी की जाती है। रोशनी के प्रकाश से विद्यालय की शोभा में चार चाँद लग जाते हैं। वार्षिकोत्सव का नाम कर्ण कुहरों में पड़ते ही छात्रों के मन प्रसन्नता से हिलोरें लेने लगते हैं।

समय– हमारे विद्यालय में वार्षिकोत्सव प्रतिवर्ष शिवरात्रि के पवृ पर्स संपन्न किया जाता है इसी दिन महर्षि दयानन्द सरस्वती को बोध प्राप्त हुआ था। हर साल की तरह हमारे विद्यालय पर सम्पन्न किया जाता का वार्षिक उत्सव महान् समाज सेविका डॉ. आर. के. वर्मा की अध्यक्षता में सम्पन्न किया गया। वार्षिकोत्सव मनाने का समय सायंकाल चार बजे का निर्धारित किया गया। नगर के प्रतिष्ठित महानुभाव, शिक्षा शास्त्री, प्रधानाचार्य तथा विद्यालय के छात्र तथा अध्यापक निश्चित समय से पूर्व ही आकर नियत स्थानों पर आसीन हुए। सबके चेहरों में हर्ष तथा उमंग के भाव नजर आ रहे थे।

उत्सव का शुभारम्भ– विद्यालय के प्रवेश द्वार पर प्रधानाचार्य तथा कतिपय अध्यापक गण उस उत्सव के लिए मनोनीत अध्यक्ष का स्वागत करने के लिए पलक पाँवड़े बिछाए हुए थे। ठीक 3.50 बजे अध्यक्ष का वाहन प्रवेश द्वार पर आकर रुका। प्रधानाचार्य तथा अध्यापकों ने उनका भव्य तथा सोत्साह स्वागत किया। जैसे ही अध्यक्ष ने पंडाल में कदम बढ़ाये, छात्रों तथा अध्यापकों ने खड़े होकर तथा ताली बजाकर उनके प्रति आदर भाव व्यक्त किया। विद्यालय के प्रधानाचार्य ने अध्यक्ष से आसन ग्रहण करने की प्रार्थना की। अध्यक्ष के आसन पर आसीन होने पर पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान हो गया। विद्यालय के एक छात्र ने अध्यक्ष को • माला पहनाकर स्वागत गान गाया। जिसके बोल निम्नवत् हैं

“स्वागत समादर आपका, आये कृपा कर आप हैं।

दर्शन सुमग देने हमें, हरने हमारे ताप हैं ॥ “

ईश वन्दना से इस उत्सव का कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ। कार्यक्रम की एक प्रति संयोजक के पास थी तथा दूसरी अध्यक्ष की मेज पर रख दी गई। विद्यालय के प्रधानाचार्य ने मुख्य अतिथि का स्वागत किया। उसके बाद आये हुए गणमान्य लोगों के प्रति भी आभार प्रदर्शित किया। विद्यालय के छात्रों ने महान् कहानीकार प्रेमचन्द द्वारा लिखित पंच परमेश्वर कहानी का नाट्य रूपान्तर बड़े ही सफल ढंग से अभिनीत किया था। पात्र अलगू तथा जुम्मन चौधरी के यह कथन सुनकर—”पंच न किसी का दोस्त होता है तथा न दुश्मन, पंच खुदा का स्थान होता है।”

इन शब्दों को सुनकर दर्शक भाव-विभोर हो गए। एक छात्र ने डॉ. श्याम नारायण पांडेय की वीर रस की कविता सुनाकर सबको वीर रस का ही कर दिया। देश-प्रेम तथा कारगिल युद्ध से सम्बन्धित भारतीय सैनिकों के शौर्य तथा बलिदान की कविता दर्शकों के मन-मानव को झकझोरने वाली थी। एक छात्र का मूक अभिनय भी प्रशंसनीय था।

अनेक आयोजन-इस भाँति छात्रों ने अनेक प्रकार के कार्यक्रम प्रस्तुत किये। इन कार्यक्रमों की दर्शकों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की। प्रधानाचार्य ने विद्यालय की वार्षिक प्रगति का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया। विद्यालय में जो छात्र हाईस्कूल तथा इण्टर की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुए थे, उनके नाम पढ़कर सुनाये। नामों को सुनकर सम्बन्धित छात्र मित्र तथा अभिभावक प्रसन्नता का अनुभव करने लगे। प्रधानाचार्य ने इस अवधि में विद्यालय में आये उतार-चढ़ावों का भी उल्लेख किया तथा सबके सहयोग की आकांक्षा भी की क्योंकि बिना सहयोग के अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता ।। इसके पश्चात् डॉ. आर. के. वर्मा ने छात्रों को चरित्र निर्माण विषयक बहुत ही शिक्षाप्रद

भाषण दिया। उन्होंने छात्रों से कहा

“उद्यम ही बस सुख की निधि है। बनता जो मानव का विधि है ॥”

इसके पश्चात् अध्यक्ष महोदय ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में विजयी हुए छात्रों को पुरस्कार प्रदान किये।

प्रधानाचार्य ने आगन्तुकों, अभिभावकों, अध्यापकों तथा छात्रों के प्रति आभार व्यक्त किया क्योंकि सबके सहयोग के फलस्वरूप ही उनकी शोभा में चार चाँद लग सके। मिष्ठान्न वितरण के साथ हा प्रधानाचार्य ने एक दिन के अवकाश की घोषणा की। इसे सुनकर छात्र

प्रसन्नता से फूले नहीं समा रहे थे।

उपसंहार-वार्षिकोत्सव विद्यालय का एक आवश्यक पहलू है। छात्र, अभिभावकों तथा अध्यापकों के मिलने का एक पावन अवसर है। विद्यालय की उन्नति तथा उतार-चढ़ावों का परिचायक है। छात्रों के मन-मानस में एक नवीन उत्साह तथा उल्लास को भरने वाला है। मन तथा मस्तिष्क को तरोताजा बनाने का सर्वोत्तम साधन है।

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